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वृहत् पूना-संग्रह नहीं एक भी हठ से चलिया, श्रीपेण हुओ दुखी भारी। आतम शांतिः ॥ ५॥ राणी संग राजा विचारी, मृत्यु दिलमें गिरधारी, कियो जहर प्रयोग लाचारी। आतम शांति ॥ ६॥ आतम लक्ष्मी प्रभु हर्षे, सिमरी उत्तर कुरु? वर्षे हुये२ युगल रूप नर नारी | आतम शांति० ॥७॥ राणी से उत्पन्न हुई 'श्रीकांता' नाम कन्या थी । कन्याको उमरलायक हुई समझकर राजा बल ने बड़ी ऋद्धिसहित श्रीपेगराजा के पुत्र इन्दुलेग के स्वयंवर में भेजी थी। 'अनंतमतिका' नाम की वेश्या भी उस प्रसंग में वहाँ साथ में आई थी. जिसको देखकर मोहित हुये दोनों भाई आपस में उसकी प्राप्ति के निमित्त लड़ने लगे। पिता ने बहुत कुछ समझाया परन्तु एक भी अपने दुराग्रह से पीछे नहीं हटा। आखिर श्रीपेगने लाचार हो, मारे शर्म के जहरवासित कमलको सूधकर अपने प्राणों की आहुति कर दी।
१ जंबूद्वीपांतर्गत 'उत्तरकुरु' नाम के युगलियों के क्षेत्र में।
२ श्रीपेगराजाकी 'अभिनंदिता और 'शिखिनंदिता दो रानियां थी । अभिनंदिता के जीव का संबंध श्रीषेण के जीव के साथ श्रीशांतिनाथस्वामि के अन्तिम भव पर्यन्त रहा है, इसलिये अभिनंदिता के जीव का खास वर्णन पूजा में लिया गया है । वाकी यूं तो राजा श्रीपेण के साथ दोनों ही राणियों ने और एक 'कपिल' नाम के दासी पुत्र की स्त्री 'सत्यभामा नाम की ब्राह्मणी, जिसको धोखे में कपिल को ब्राह्मण पंडित समझकर उसके पिता ने