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वृहत पूजा संग्रह (तर्ज सारंग-कहरवा-समकित आतम गुण प्रगटाना)
तीर्थंकर पद जाऊं बलिहारी ||अंचली०॥ तीर्थ करे तीर्थंकर कहिये, तीरथ श्री संघ चार प्रकारी ॥ तीर्थकर ॥१॥ चारों गतिमें जीव विलक्षण,+ तीर्थकर पदके अधिकारी ॥ तीर्थकर० ॥ २ ॥ उत्कृष्टा पुण्योदय होवे तीर्थंकर शुभ नास. उचारी | तीर्थकर० ॥३॥ कल्याणक जिनदेवके करते, सुर सुरपति उत्सव अत्ति भारी ॥ तीर्थकर० ॥ ४ ॥ नाम थापना द्रव्य भावसे, तोर्थ कर सेवे नर नारी ॥ तीर्थकर० ॥ ५ ॥ चौतीस अतिशय पैंतीस वाणी, प्रगटे अरिहंतके गुण वारी ॥ तीर्थकर० ॥ ६ ॥ आतम लक्ष्मी संपदा प्रगटे । होवे वल्लभ हर्ष अपारी ॥ तीर्थकर० ॥७॥
॥ दोहा॥ पहला भव श्रीपेणका१ युगल२ दूसरा जान । स्वर्ग प्रथम३ है तीसरा, अमिततेज४ चउ मान ॥१॥ पंचम दशमें५ स्वर्गमें, अपराजितई बलदेव । अच्युतपति भव सातमें, अष्टम भव नरदेवटार॥
+ तीर्थंकर होनेवाला जीव चारों गति में अन्यान्य उस-उस __गति के जीवों से स्वाभाविक ही विलक्षण होता है । * नरदेव-चक्रवर्ती राजा।