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श्रीमद् विजयवल्लभसूरि विरचित
॥ श्री शांतिनाथ पंचकल्याणक पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ शांतिनाथ जिन सोलमा, शांतिकरण सुखदाय | नमन करी स्ववना करू, सिमरी शारद माय ॥ १ ॥ विजयानद सूरीशके, चरनकमल मन लाय । शातिनाथ पूजा रचू, हेम सूरि सुपसाय ||२||
कल्याणक जिनदेवके, पच अनादि रीत । च्यवन१ जनम२ व्रतरे ज्ञान है, पचममोक्ष पुनीत ॥३॥ समकित से भव जानिये, अतिम भव निसान | इस कारण अरिहंतके, वर्णन भव परमान ॥४॥ शाविनाथ अरिहतके, द्वादश भाव विस्तार | द्वादशमे भव मानिये, कल्याणक अधिकार ||५|| नदीश्वर उत्सव करे, प्रति कल्याणक इन्द | श्रावक तिम शुभ भावसे, पूजे
श्री जिनचंद ॥६॥
क्षत६ फल ७ सार ।
जलर चदन र सुमर धूपसे४ दीपा शचि नैवेद्य मिलायके, पूजा अष्ट प्रकार ॥७॥