________________
२५४
वृहत् पूजा संग्रह
सुनि७ अंक चंद्राब्दे१ (१६७७), मधु दशमी सुदि सारी । करी यात्रा शशिवारे, हुओ आनंद अति भारी ||८|| दिवस महावीर जयंतीका, त्रयोदशी चैत्र गुरुवारे । आतम लक्ष्मी केसरिया में, पूरण चल्लभ हर्प धारे ॥६॥ तपागच्छ नाम दीपाया, श्री विजयानंद सूरिराया । विजयलक्ष्मी गुरुदादा, विजय श्री हर्ष गुरु पादा ||१०|| लघु तस शिष्य वल्लभने, स्तवे श्री आदि जिन भावे । कारण छद्मस्थ स्खलनाका, मिच्छामि दुक्कडं थावे ॥११॥ ॥ काव्यम् मंत्रश्च पूर्ववत् ॥
श्रीआदि जिनपारंगताय जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥ ५॥
事