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श्री आदीश्वर पंचकल्याणक पूजा २४५ कुल थापन वज्री करे, वंश थापना साथ । राज्य स्थापना प्रभु हुई, निर्जर पतिके हाथ ॥३॥ लग्नविधि प्रभु साचवे, और उचित सब नीत ।' 'समये प्रथम जिनंदके, इन्द्र करे यह रीत ॥४॥ इन्द्र किये व्यवहारको, देख देख सब लोग। निज निज कारज साधने, करन लगे उद्योग ॥५॥
लावणी ॥ (तर्ज-सग नर परनारी हरना) ऋपम प्रभु सब जग बस कीना। किये बहु उपकार जगतमें कर्त्तापन लीना ऋ० ॥ अचली ॥ सिखाया शिल्प पांच प्रभुने । कुम्भकार१ स्थकारर चित्रकृत३ तंतुवायष्ट विभुने । पांचमा नापितका सहिए। क्रमसे मेद अनेक हुए जग कर्म विविध लहिए । कला नरनारीकी कहिए । युगला धर्म निगारिया, किया जगत उपकार। स्वामी शिक्षासे हुवा, दक्ष लोक नर नार। सफल जग उपकारी जीना ॥ किये बहु उपकार० ॥ १ ॥ उमर छः लाख पूर्व जानो। भरतादिक सतान सुपुत फल गृहस्थ तरु मानो। हुए नृप लास पूर्व वीसे। पूरन प्रयसठ लाख चलाइ राज्य नीति ईसे । परम्पर आज जगत दीसे । एक दिवम
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