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वृहत् पूजा-संग्रह शचीपति । जन्मोत्सव करता ॥ अंचली ॥ पालक नाम 'विमान बैठ सुर साथमें संचरता। जन्म थान आकर वज्री निज पांच रूप धरता ॥ कर० ॥ १ ॥ एक रूप जिन ग्रही दो पासे चामर दो करता। एक छत्र पाछल आगल एक वज्र ग्रही चरता ॥ कर० ॥ २ ॥ मेरु महीधर चउसठ सुरपति स्नान मिली करता। विधिसे पूजन करके प्रभुके चरननमें परता ॥कर० ॥ ३॥ जननी पासे प्रभुको धर कर इन्द्र हुकम करता । द्वात्रिंशत कोटी रत्नोंसे जम्भक पर भरता ॥ कर० ॥ ४ ॥ पूर्णरूप जन्मोत्सव करके आत्म लक्ष्मी वरता। नंदीश्वर उत्सव कर चल्लभ हर्ष सदन चरता ॥ कर० ॥ ५ ॥
काव्यम् मंत्रश्च पूर्ववत् ॥ श्रीमदर्हते जलादिकं यजामहे स्वाहा ॥ २ ॥
॥ तृतीय दीक्षा कल्याणक पूजा ।।
॥दोहा॥ जागी माता देखके, पूजन पुत्र सुअंग । रोम रोम हर्षित भई, अति आनन्द अभंग ॥१॥ नाभिराय निज पुत्रका, नाम ऋषभ भगवान । धरते गुणयुत देखके, साथल ऋषभ निशान ||२||