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वृहत् पूजा संग्रह करि तीन प्रदक्षिण, रोहण विधि मन भाना हो ॥ प्र० ॥३॥ या विधि सकल करम रिपु दारण, ज्योतिमें ज्योति समाना हो ॥ प्र० ॥ ४ ॥ जगतारण श्रीजिन दरसणसे, चन्दकपूर लुभाना हो ॥ प्र० ||५||
॥काव्य ॥ भव्याति ध्वजवरैःससुभैः सलीले, जैनेश्वरंकनकदंडयुततःससोभैः। कर्मारिवन्दजयछद्म समन्वितैर्यो । वै सो भजेच्छिदिवादिसुराज्य लक्ष्मीः ॥१॥ ॐ हीं श्रीपर० पौषध व्रत दृढ़करणाय ध्वजं यजामहे स्वाहा । ॥ त्रयोदश अतिथि संविभाग व्रत फल पूजा ।।
॥दोहा॥ द्वादशमो व्रत सुख फलद, साधु दान सनमान । अजराभर पद संपजे, शालिभद्र अनुमान ॥
॥राग कजली ।। (तर्ज-मेरो मन मोह्यो माई, आनन्द झीले, आ०)
साध दानव्रत भवि हृदय धरो, हृदय धरो रे भाई हृदय धरो।सा०॥ व्रत संयमगत परलिंगीने, पडिलाभन मति रिजु न करो ॥ रिजु० भा० सा० ॥१॥ जिनमत मुनिवर चरण