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बारह व्रत पूजा
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नमीजे, असनादिक देई सुकृति वरो || सु० भा० सा० ॥ २ ॥ वलि पचातिचार निवारी, परम विरतिना विघन हरो || वि० मा० सा० ||३|| श्रीश्रेयांस ने चंदननाला, अनुमाने पद निरृत्ति वर्ग || नि० मा० सा० || ४ || कुशल कला मुनिशाल करोने, भाजल सागर झटति तरो ॥ भ० भा० सा० ॥ ५ ॥
॥ दोहा ॥
फल दल पूजा तेरमी, भरि भाजन कमनीय | भविक रचो भगवंतनी, भन विषधर दमनीय ॥ ॥ राग ख्याल ॥
(तर्ज- लोभी नेना रे, लोभी नेना हो ४० ) लोभी सेणा रे लोभी सेणा हो पूजन के लो० ढेर || पूजन विधि प्रभुकी दिल घर ले; धिर कर मन तनु वैणा ॥ हो० पू० ॥ १ ॥ श्रीफल पूगी वीजपूर वर, आम्र कदली फल लेणा ॥ हो पू० ॥ २ ॥ हम नानाफल गहि प्रभु आगे, भरि भाजन घर देणा ॥ हो पू० ॥ ३ ॥ भक्ति विमल सुचित थर मनमें, प्रभु समरण दिन रेणा । ॥ हो पू० || ३ || कपूर कहे प्रभु पद पकजमें, पट्पद भए युग नेणा || हो० पू० ॥ ५ ॥
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