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बृहत् पूजा-संग्रह
ढोकन बुद्धि प्रबल सुविचारे || श्रीजि० ॥ १ ॥ या पूजन जन तन मन रंजन, गंजन कुगति कुबोध विदारे । सबल करम नग भेदनहारो, सघन भवोदधि पार उतारे || श्रीजि० ||२|| सुमति सानुभव आण मिलावे, ते पिण पद शिवशर्म समारे । पीन महोदय धार भाव धरी चन्दकपूर सनूर निहारे श्रीजि० ॥३॥
॥ काव्य ॥
यो खंडजाति गुणवृन्द समन्वितानि । ना ढोकये-द्विपुल निर्मल तंदुलानि || कर्म्मावलिं टति छेद तिसज्जिनाग्रे । सो ऽसौभजेच्छिवमुखं सुतरामनन्तं ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्रीपर० अनर्थदंड समूलं मोचनाय अक्षतं यजामहे स्वाहा |
|| दशम सामयिक व्रत पूजा ॥ ॥ दोहा ॥
नवमो नवनिधि जाणिये, सामायक व्रत सार । सुर जेहनी आशा करे, सुरतरु सम दातार ||
|| ढाल ||
(तर्ज - आय रहो दिल बागमें, हो प्यारे जिनजी ) सामायिक व्रत पाल रे, भविक जन सामा० ॥ टेरे ॥