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चोरत्र पूजा
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पट काय विराधनमें दुखदेव ॥ २ ॥ इङ्गालादिक करण
पंचोत्तर दशविध
कॅरावण सकल विधान, उदर भरण कर्मादान । इम सहु अनरथ करम अवर पिण दुखनी साणं, व्यर्थपणे मॅनमान्या छेदे पुन्य प्रधान ॥ ३ ॥ उणकर पूर्वे केड गया नर सकट धाम, व्रत ग्रहीने रहिये वन लहिये शिव सुख ठाम ए व्रत तणो भवोदधि तारण तरण प्रकाम, कुशल कला नित करतां प्रगटे अभिनव साम ॥ ४ ॥ --
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॥ दोहा ॥
● नवमी श्रीजिनराजनी, पूजा परम
- विमलाक्षत भरि भाजने, भविजन करे ॥ राग पीलू ॥
1 वर्ज -अन तो धारयो मोहि चहिये जिनदराय राम भरो० ) श्रीजिनवरजीकी सेना सारे, मो भवभय इस दूर निवारे || श्री० || | || तदुल बिमल सकल गुण मंडित, सहित दोपरहित उर धारे। कचन पात्र भरि जिन आगे सटित दोपरहित उर धारे। कंचन पात्र भरि जिन आगे ॐ हिंण विकया पर 'विपरीत विचार विधान स्यादिकरण रसग कीरादिक पाउन वान ।
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विलास ।
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प्रकाश ॥
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