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बारह व्रत पूजा
२११ चंपक मरुक तिलक चपेली, पाडल लाल गुलाला ॥ मैं० पा० ॥ विमल कमल परिमल मदमाता, न तजे अलि मतवाला मैं० न० मवि० ॥२॥ जाइ दमण जूही कोरटक, मालती मरुक रसाला | मैं० मा० ॥ ऐसे पंच वरण कुसुमे करि, माल रचन परनाला ॥ मैं० मा० भवि० ॥३॥ ए माला पूजन करो नाशे, कोटि करम दुख जाला | मैं को० ॥ सुमति सुरति अनुभव वलि प्रगटे, त्रासे कुमति कुचाला | मैं० त्रा० भवि० ॥ ४ ॥ ए विधि सवर द्वार विकासे, पाप सदन मुख ताला | मैं० पा० ॥ कपूर कहे प्रभु चरण शरणमें, मगलमाल विशाला ॥ मैं० म. भवि०॥
|| कान्य ।। सरसमुद्गर चपकपाडले। मरुकमालति केतकीसस्कज॥ विधिविगुफ्य जिनं परिपूजयेत स्रजमजस्र मनंत सुसेच्छुकः ॥ १॥ ॐ ही श्री पर० अदत्तादान मोचनाय पुष्प माल यजामहे स्वाहा ॥४॥