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वृहत् पूजा-संग्रह
|| पंचम मैथुन विरमण व्रत दीपक पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ व्रत चौथे मैथुन तजो, भजो भविक भगवान । - शीलाराधन योग से, लहिये शर्म वितान ||
॥ राग सोरठ ॥
- (तर्ज-कुद किरण ससी ऊजलो रे देवा )
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मन वच काया थिर करी रे वाला, कलुष कुशील. निवारो रे आछो । ऐह नरक रमणी तणी रे वाला, शोदर अति हितकारो रे आछो ॥ १ ॥ नृ-सुर पशु सहु जानो रे वाला, विषय कलित बहु दोषे रे आछो । ते परिहारीने थिर रहो रे वाला, निज द्वारा संतोषे रे आछो ॥ २ ॥ लंकापति नरके गयो रे वाला, ए मैथुन रसः धार रे आछो । एहने तजकर के लह्या रे वाला,
शीलरतन जतने
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जीव सकल सुख सार रे आछो || ३
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धरो रे वाला, तस दूषण सत्र छंडी रे आछो । कुशल कला करिने लहो रे वाला, शिवदुख माल प्रचंडी रे आछो ॥ ४ ॥