________________
२०४
वृहत् पूजा-संग्रह
॥दोहा॥ सकल करम दल मल हरण, पूजा धुर जलधार । जगनायक जिन तुङ्गनी, उर धर भगति उदार ॥
॥राग झिझीटी॥ (तर्ज-निरमल होय भन के प्रभु प्यारा, सव) जिनवर न्हवण करण सुखदाई, छूटे जनम मरण दुखदाई | जि० ॥ ए टे॥ खीरजलधि गंगोदक मांहे, अमल कमल रस सरस मिलाई ॥ जि० ॥ १॥ निरमल सकल परम तीरथ जल, मणि युत कंचन कलस भराई ॥जि० ॥ २ ॥ या जिनजीके न्हवण करणते, भव भय दुखदल दाघ समाई ॥ जि० ॥३॥ द्रव्य भाव विध समकित फरसे, ते नर नरक निगोद न जाई ॥ जि. ॥ ४ । याते भविजनके दुख नासे, कपूर कहे सुर होत सहाई॥ जि० ॥ ५ ॥
॥काव्य ॥ परमलंकृत संस्कृतश्रद्धया। स्नपति योजिनचन्द्रमिमंमुदा ॥ भवभयं परिमुच्य सदोदयं भजति सिद्धिपदं सुखसागरं ॥ १ ॥ ॐ हीं श्री परमात्मने अनन्तानंत ज्ञान शक्तये जन्म जरा मत्यु निवारणाय श्रीमत्समकितत्रत दृढ़करणाय जलं यजामहे स्वाहा ॥