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बारह व्रत पूजा
२०३ रे अ०, दायक गुणमणि खाण ॥ कुशल कला कलना थकी, प्रगटे परम निधान ॥ ४ ॥
॥दोहा॥ समकित व्रत धुर आदरो, मेटो निजमन मर्म । दूर थकी ए परिहरी, कुगुरु कुदेव कुधर्म ॥
॥राग रामगिरी ॥ (तर्ज-गात्र लहे। जिन मनरंग रे देवा ) धुर समकित चित में धरो रे बाल्हा, भव भय दुसदल परिहरो। परिहरो, हां रे वाल्हा प० । शिवरमणी पर लीजिये ॥ १॥ वीर जिनेसर चंदिये रे वाल्हा, जिम चिरकाल सु नंदिये । नदिये, हो रे बाल्हा नं ॥ कुमति दुरति सर कीजिए ॥ २॥ चरण करण गुणमणि निलो रे वाल्हा, जगजन तारण सिरतिलो |सिरतिलो, हां रे० सि० ॥ सदगुरु चरण नमीजिये ॥ ३ ॥ जिन भापित श्रुत सागरो रे वाल्हा, मेद विविधविध आगरो। आगरो, हां रे० आ० । श्रवण जुगल-कर पीजिए || जिनसासन जिनधर्मनो रे वाल्हा, राग दलन वसु कर्मनो, हां रे० क० । कुशल कला ग्म पीमिरे ||५||