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ऋषि-मण्डल-पूजा
१६१ मादि अनत भग स्थिति धरियो, पद शिवचन्द्र विजयधारी ॥ पू० ॥३॥
काव्य ।। सलिल० ॐ ही श्री १० श्रीमत्अनत जिने० जल० ॥ ॥ पंचदश श्रीधर्म जिन पूजा ॥
|| टोहा॥ भानुभूप पुल भानुकर, पनरम जिन सुएफार । शोभित मधु जग पिपिन जन, हरख फलट जलधार !!
॥ढाल॥ (न-धार माना तोरे यमति यने यनमारी)
धर्म जिनेवर घरम थुरघर, जगाधर जगपाला ॥ मैं चारिका मुनगा नंदन पाप निकटन प्रभु भये दीनदयाला मैं वारि०व०॥१॥ प्रभु धीरज गुण निरपि जम गरि, जिसीनो अचला धाग ॥ पा०॥ जिन गंगीता चरम निध लपि, फिय लोसन द्विारा 1 में यारि०धर्म ॥२॥ एमिनयन्न माग र मनने, लदि जिन पति अपनारा ॥20॥ परम चरि दल करि मयि लहिम्पो, पद शिरचंद्र दारा में पारित धर्म ॥३॥