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अपि मण्डल-पूजा
१८३ ॥ षष्ठ पद मप्रम जिन पूजा ||
॥दोहा॥ हिव पष्टम जिनपर तणी, पूजन करो उदार । भविचित भक्ति धरी करी, सुख सपति करतार ।।
॥राग सारग ॥ (तर्ज पावन चंदन घसि कुम कुमा०) हां हो रे वाला पदमप्रभु मुख चन्द्रमा, नित सकल लोक सुखदाय ए ॥ हा० ॥ हरिसुर असुर चकोरडा, नित निरख रह्या ललचाय ए हा||१|| जिन मुख वचन अमृत वणो, जे श्रवण करे भवि पान ए ॥ हां० ॥ ते अजरामरता लहे, हरिगण करे जसु गुण गान ए हां||२|| धर नृप कुल नभ दिनमणि, प्रभु मात सुसीमा नद ए हां०॥ प्रभु दर्शनतें प्रति दिने, होज्यो शिवचन्द आनन्द ए॥हा॥३॥
॥कान्य ॥ सलिल० ॐ ही० श्री प० श्रीमद् पद्मप्रभु जिने ॥ ॥ सप्तम सुपार्श्व जिन पूजा ॥
॥दोहा ॥ श्रीसुपार्श्व सुरतरु समो, कामित पूरण काज । भो! भत्रिजन पूजो सदा. वसविधि पूल समाज॥