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वृहत् पूजा-संग्रह
॥ राग कल्याण ॥ (तर्ज-मेरा दिल लाग्या जिनेश्वरसे) मेरी लगी लगन जिनवरसे | मेरी ॥ जैसे चन्दचकोर भमरकी, केतकि कमल मधुरसे ॥ मे० ॥ एह सुपारस प्रभु भये पारस, गुणगण समरण फरसे ॥मे०॥ चेतन लोह पणौ परिहरके, हुय ले कंचन सरिसे ॥मे०॥१॥ ए प्रभु करुणाकरकुँ धरिल्ये, उर जिम कमल भमरसे ||मे०॥ जे भवि जिनपद लगन धरे तसु, नहीं भय मरण असुरसे ॥मे०॥ ॥२॥ मात पृथ्वी तनु जात तनु द्युति, सम शुभ कंचन सरसे ॥मे०॥ कहे शिवचन्द्र चित्त नित मेरो, रहो प्रभु पद लय भरसे ॥मे०॥३॥
॥ काय॥ सलिल० ॐ ही श्री प० श्रीमत्सुपार्य जिनेन्द्रायः । ।। अष्टम श्रीचन्द्रप्रभ जिन पूजा ॥
॥दोहा॥ अष्टम जिन पद पूजिये, विविध कष्ट हरनार । अष्ट सिद्धि नवनिधि लहे, जिन पूजन करतार ॥