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वृहत् पूजा-संग्रह
॥ काव्य ॥
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सलिल० ॐ ही श्री प० श्रीमत्अभिनन्दन जिने ॥ पंचम श्रीसुमति जिन पूजा।
॥दोहा॥ पंचमजिन नायक न,, पंचसी गति दातार । पंचनाणवर विमल कज, वन विकसन दिनकार ॥
॥ राग कैरवो ॥ (तर्ज-बंशी तेरी वैरिणी बाजे रे) शुद्धभाव चित्तथिर धरिके रे, पूलो सुमति जिणंद । जिन भक्ति करण रसीला. लहो परमानंद ॥शद्ध भाव०॥२॥ जिनराज सुमति समंद, करे कुमति निकंद । प्रभुना चरणअरविन्द, वंदे असुर सुरिन्द ॥ शुद्ध० ॥ २ ॥ कनकाम तनु धुति सोहे, प्रभु सुमंगलानंद। करुणोपशम रस भरिया, वंद नित शिवचंद ॥ शुद्ध० ॥३॥
|| काव्य ॥ सलिलचंदन० ॐ हीं श्री ए० श्रीमत्सुमति जिनेन्द्राय जल०॥