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वृहत् पूजा-संग्रह
प्रथम जिनेश्वर तिम प्रथम,
योगीश्वर नरराय |
प्रथम भये युग आदिमें, सकल जीव सुखदाय ॥
॥ राग देसाख ॥
(तर्ज - पूर्व मुख सावनं करि दशन पावनं ) विमलगिरि उदयगिरिराज शिखरो परे, तरुणि तर तेज दीपत दिणिन्दा | युगल धर्मवार करी धरम उद्योत किये, विमल इक्ष्वाकु कुल जलधिचन्द्रा ॥ १ ॥ मातमरु देवी वर उदर दरी हरिवरा, सकल नृप मुकुट मणि नाभिनन्दा | अखिल जगनायका, मुगति सुखदायका, विमल वर नाण गुण मणि समंदा || २ || वृपभ लांछन धरा, सकल भव भयहरा, अमर वरगीत गुणकुशल कन्दा । गहिर संसार सागर तरणि समधरा, नमत शिवचन्द प्रभु चरण चंदा ||३||
॥ काव्य ॥
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सलिल चन्दन पुष्प फलनजे: सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधु प्रवरान्नकै, जिनममीभीरहं वसुभिजे ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्री परमात्मनेऽनंतानंत ज्ञानशक्तये जन्म जरामृत्यु निवारणाय श्रीमत् ऋषभ जिने