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श्री शिवचन्द्रोपाध्याय विरचित ।। ऋषि-भण्डल-पूजा॥ ॥ प्रथम जल पूजा ॥
॥ दोहा ॥ प्रणमी श्रीपारस विमल, चरण कमल चितलाय । ऋपिमंडल पूजन रचूं, वरविधि-युत सुसदाय ॥ नंदीश्वर मंदिर गिरें, शाश्वत जिन महाराज । अरचे अठ विध पूजसे, जिम समस्त सुरराज ॥ तिम चितजिनपतिगुणधरी, श्रावक समकितधार । विरचे जिन चौवीसकी, अठविधि पूज उदार ॥
॥ गाथा ॥ सलिल सुचन्दन कुसुमभरं, दीवगकरणंच धूवदाणं च । घर अक्षत नैवेद्य, शुभ फलं पूजाय अट्ठ विहा ॥१॥
॥दोहा॥ यह अठविधि पूजा करण, सुनिये सूत्र मझार । जे भवि विरचे प्रभुतणी, ते पामें भवपार ॥