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ऋषि-मडल-पूजा
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न्द्राय जलं चन्दनं पुष्प धूपं दीपं नैवद्य फलं वस्त्रं
यजामहे स्वाहा ॥
॥ श्री अजित जिन पूजा || ॥ दोहा ॥ जयजिणद दिणद सम, लखि भविरुज विरुसात । परमानन्द सुकद जल, विजयामात सुजात ॥
॥ ढाल ॥ (तर्ज-आय रहो दिल बागमे प्यारे जिनजो इस ख्यालकी )
एक अरज अनधारियें, अजित जिन एक अरज अनधारियें || आणी || अजित जिनेसर, जग अलबेसर, करम निजर निहारिये । अजित जिन एक० । वारणतरण बिरुद सुणि तेरो, आयो शरण तिहारियें || अजित० एक० ॥ १ ॥ चरम सिंधु भाभय जल निपतित, चरण पतित मोहे तारिये । अजित० एक० | परमानन्द घन शिन वनितानन, काज मधुपान सुकारिये ॥ अजित० एक० ॥ २ ॥ चिर सचित घन दुरित तिमिर हर । तुम जिन भये तिमिरारिये । अजित० । कहे शिवचन्द्र अजित प्रभु मेरे एह अरज न विसारिये ॥ अजित० ॥३॥