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पंचकल्याणक पूजा
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नव नव रूप मनोहर, सुर समुदय मन भायो रे । सुरकुमरी वरभूपण भूपित, अद्भुत रूप बनायो रे || दे० || आ० ||३|| • नव नव यानवाहन रच सुखर, सुरगिरि शिसरे आयो रे । चौसठ इन्द्र करत अति उत्सव, मेघ घटा घररायो रे || दे० ॥ आ० || ४ || काली घटा वरदामनी चमकत, दादुर मोर सुहायो रे । अतिहि सुगंध पुप्पत्रज वरसत, मोतियनकी भर लायो रे || दे० ॥ आ० ॥ ५ ॥
॥ दोहा ॥
शक्र जाय जिनपर गृहे, जिनजननी जिनराज | प्रणमी श्रीमहाराजनको, भक्ति करे सुरराज ॥ ॥ राग कालिंगडो ॥
(तर्ज- सुन्दर नेमि पियारो माई )
तुम सुत प्रान पियारो माई तु० ॥ आंकणी । जगत्सल जगनायक निरख्यो, धन धन भाग्य हमारो माई || ० ||१|| धन जगजननी तुम सुत जायो, अधमउधारण हारो माई । धन धन प्रगट भयो जगदिनकर, त्रिभुवन तारनहारो माई || तु० | २|| सब सुर चाहत स्नात्र करनकु सुरगिरि प्रभुजी पधारो माई ॥ कर जोडी प्रभु
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