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________________ १५२ वृहत् पूजा संग्रह तेलाभ्यंग कराई रे दे०॥५॥ भूषण भूपित अंग विलेपन, देवदूष्य पहराई रे, दर्पण ले मंगल घट थापी, चामर जुगल ढुलाई रे ॥दे० ॥ ६ ॥ पंच बरनके फूल सुगंधित, सुरकुमरी वरसाई रे । होम करी रक्षा पोटलिया, जिनवर करे बंधाई रे॥ दे० ||७|| संगल गावत जिन जगजननी, निजगृह माहे ठाई रे। सफल भयो निज आतम जाणी, दिशिकुमरी घर आई रे ॥ दे० ॥८ । स्वस्तिक करे चमर ढोले इन्द्र वने २ या ४ ॥दोहा॥ अतिहि अधिक उत्सव करी, गई कुमरी जिन थान । इन्द्र हवे उत्सव करे, जन्म समय जिन जान ।। || राग गोड़ी सारंग मल्हार ॥ ___ (तर्ज-सांझ समे जिन वंदो) आज उच्छव मन भायो रे देखो माई। जगजननी जिन जायो रे ॥ दे०|आ०॥ त्रिभुवन माहि प्रकाश भयो है, इन्द्रासन थररायो रे ।।दे०॥१॥ अवधिज्ञान घर जिनजीकु निरखत, हृदय कमल उलसायो रे। हरिणगमेषी इन्द्र हकमसे. घंट सघोष घरायो रे॥ ॥ ॥२॥ रत
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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