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पंचकल्याणक पूजा
॥ढाल || विन कारण कारज नहीं, हां रे का० ए॥ ए सब लोक प्रसिद्ध । भार निक्षेप प्रधानता, कारज रूपे सिद्ध ॥ १ ॥ विण आकारे द्रव्यनो ॥ हां ॥ द्र० ए॥ नाम न होय विशुद्ध ॥ नाम गिना आकारनो, प्रगटपणो नवि बुद्ध ॥ २ ॥ नामादिक कारण सही ॥ हां ॥ का० ए॥ इन विन भाव न होय। भाव विशुद्ध जिनतणो, पूज करो सहु कोय ॥ ३ ॥ व्यवहारे निश्चय लहे || हां ॥ नि० ए० ॥ कारण कारज होय ॥ पावडशाला क्रम करी, सौध चढे सहु कोय ॥ ४॥
॥दोहा॥ ज्ञानकला कलितावमा, लोकालोक प्रकाश । व्यापकभावे घिर रयो, शुद्ध विकास विभास ||
राग-सारंग हाहो रे देवा जोति सकल जिनराजनी, सह लोकालोक प्रकाश ए। हांहो रे देवा राजत श्रीजिनराजजी, वाणी प्रवचन शुभवास ए॥१॥ हाहो रे देवा माता न नित शारदा, गुरु पंच कल्याणक सार ए। हाहो रे देवा तीर्थकरना वरण, गुण शास्त्र परपर धार ए ॥२॥