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श्री बालचंद्रोपाध्याय कृत ॥पंचकल्याणक पूज ॥ प्रथम च्यवन कल्याणक पू
॥दोहा॥ ज्योतिरूप जगदीशनु, अदभुत रूप अनुप । प्रवचन प्रभुता प्रगट पण, जय जय ज्योति सरूप ।। चौबीसे जिनवर नमी, पंच कल्याणक रूप । शासननायक वरण, दर्शन ज्ञान सरूप ॥ कल्याणक ओच्छव करे, इन्द्रादिक जे देव ॥ ते भावे भविजन करे, श्रीजिनवरनी सेव ॥
॥ राग सरपदो॥ ज्योति सकल जगदीसना। हां रे जगदीसनी ए ।। चार निक्षेप प्रमाण । नाम जिनादिक जिन कथा, आगम मांहि प्रधान ॥
|| गाथा ॥ नाम जिणाजिण नामा, ठवण जिणाश्रो जिणंद पडिमाओ। दबजिणा जिण जीवा, भावजिणा समवसरणत्था ॥ १॥