________________
वृहत् पूजा-संग्रह
॥ दोहा ॥ शासननायक जगधणी, त्रिभुवन पति परमेश। . पर उपगारी प्रभु तणा, गुण गावत सहु वेस ॥
॥ ढाल ।। हांहो रे देवा वीशथानक करि सेवना, बांध्यु जिन नाम प्रधान ए ॥ हांहो० दिव्य अमर सुख अनुभवे, प्राये प्रभु पुण्य प्रणाम ए ॥१॥ हांहो० निरमलतर वरज्ञानना, धारक कारक शुभयोग ए॥ हांहो० शब्द वरण रस गंधना, शुभ फरस तणा वर भोग ए ॥२॥ हांहो. शाश्वत सिद्वायण तणा, नित उत्सव करत सुरंग ए॥ हांहो० बालचन्द्र पाठक कहे, नित मंगल होय सुचंग ए ॥३॥
॥दोहा॥ पुण्य पूर्वभव प्रभु तणो, प्रगट्यो प्रगट प्रभाव । सुरकुमरी नित प्रति करे, नाटक नव नव भाव ॥
(तर्ज-पूर्व मुख सावनं ) । शुद्ध निज दर्शने, करिय गुणकर्षना, जिन-चरण सेवना विविधकारी । हे अईयो विविधकारी ॥ ए आं० ॥