________________
वीसस्थानक पूजा
१३६ माव तीर्थ प्रभुजी कह्या, प्रभाविक ए अष्ट । तीर्थ प्रभावन जे करे, ते फल लहे विशिष्ट ॥
॥ ढाल राग धन्याश्री ।। (तर्ज-तेज तरण मुख राज एहनी) तीरथ परमावन जयकारा ॥ ती० जिनसे भर सागर जल तरिये, ते तीरय गुण धारा || ती० ॥१॥ जिनके गण घर तीरथ कहिये, वलि सहु संघ सुखकारा । एह महा तोरय पहिचानो, यदि लहो भनपारा ॥ ती० ॥२॥ अडसठ लौकिक तीरथ तजि करि, भज लोकोत्तर सारा । द्रव्यमात्र दोय मेद लोकोत्तर, स्थिर जंगम भयहारा । ती० ॥३|| पुण्डरीक परमुख पच तीरथ, चत्य पंच परकारा। एह चा तीरय थापर कहिये, दीठां दुरित विदारा ॥ तो० men धीमीमघर प्रमुग धीश जिन, विरहमान भवतारा दोष कोटि केलि विसरता, जंगम तोथं उदारा । ती० ॥५। संघ चघि जंगम तोग्य, जिन शासन उजियारा । पर अनत गुग भूपण भूपित, निनको नमन जिनमाग ॥ ती० ॥६॥ ए नोग्य परमारन कग्धि, शुम भारत आधारा हिर कर जल शितितम पदकी, जाऊ प्रतिदिन