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बृहत् पूजा-संग्रह एक श्लोकका गणित ए जोय ॥ भ० ॥ इक पद को परिमाण ए जाण, इण पदसे आगम परिमाण ॥ भ० ॥७॥ तीन कोडि अरु अडिसठि लाख, सहस चैयालिस ए पद भाख ॥ भ० ॥ इतने पदसे अंग इग्यार, करी गणना अवि चित्त धार || भ० ॥८॥ बारम दृष्टिवादको मान, असंख्यात पदको पहिचान || भ० ॥ इनको चौदपूरब इक देश, इसको पार लह्यो हे गणेश || भ० ॥६|| एह दुवालस अंग उदार, एहनी जाये नित वलिहार ॥ भ० ॥ एहनी द्रव्यभाव बहु भक्ति, करिये धरिये जिनपदयुक्ति ॥ भ० ॥१०॥ रत्नचूड नृप सुखमा धार, जिनश्रुत भक्ति करी हितकार ॥ भ० ॥ भथे जिन हरप परमपद दाय, जिनके सुर नरपति गुन गाय ॥ भ० ॥११॥
|| काव्य ॥ अन्नाणवल्ली वणवारणस्स, सुवोहिनीजांकुर कारणस्स । अणंतसंसुद्ध गुणालयस्त, णमो दयामंदिर सत्थुयस्स ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीश्र ताय नमः अष्टद्रयं यजामहे स्वाहा ॥ १६ ॥ ॥ विशति श्रीतीर्थपद पूजा ।।
॥दोहा॥ प्रावचनी अरु थर्मकथी, बादि निमित्ती जाण । तपसी विद्या सिद्ध पुनि, कवि एह मुनित्राण ॥