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बृहत् पूजा-संग्रह गुणधर, सकल आगम सागरा । युगप्रवर श्रीजिनचंदरि, गुरु सकलसूरीसरा ॥ ४ ॥ तसु चरण कमलज युगलसेवन, अहनिशि मधुकरता धरी । पुन सुगुरुपद, अरविन्द युगनी, कृपा नित चित आदरी। गणधार श्रीजिनहरपमरी, हरपधरि घन अघहरी । या वीस पदकी, विविध पूजन, विधि तणी रचना करी ॥५॥
__|| विशतिस्थानक आरती ॥ (तर्ज-जिया चतुरसुजाण नवपदके गुण गाय रे) ।
पिया विंशतिस्थान मंगलआरति गाय रे। सुमतिप्रिया कहे चेसनपतिको, निसुण वचन मन भायरे ॥ पि० ॥१॥ यदि निजगुण परिणति तुम चाहिये, तिणको एह उपायरे ॥ पि० ॥ अरिहंत सिद्ध आचारिज पाठक, साधु सकल समुदाय रे ॥ पि० ॥ २ । इत्यादिक विंशति पद समरण, भवभय हरण विधाय रे, एह आरती अरतिवारती,
* अट्ठारसय तदुवरि इकोत्तर वरसभाद्रव मासए, परब विशद दशमी रविज वासर अजीमगंजपुर वासए, विंशति पदों की विविध पूजा विध तणि प्रति खासए। उवझाय शिवचंद्र गणियं लिखी मन उल्लासए ।