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वृहत् पूजा संग्रह ॥ एकादशम चारित्रपद पूजा ||
॥दोहा॥ इग्यारम पद नित नमु, देश सरव चारित्र । पंक मलिनता दूर करि, चेवन करे पवित्र ॥ एह चरण सेवन करे, रंक थकी सुरराय । तीन जगतपति पद दिये, जसु सुर नर गुणगाय ॥
॥राग सारंग ॥ (तर्ज हां हो देवा वावन चन्दन घसि कु०)
चरण शरण मुझ मन हत्यो, सुख करण हरण घन पाप ए ॥ हां हो रे वाला || एह चरण जलधर हरे, अज्ञान तरुणतर ताप ए ॥ हां ॥ १ ॥ आठ कपाय निवारतां, देश विरति प्रगट हुने खास ए ॥ हां ॥ बार कषाय निवारिया, समविरति लहे गुणवास ए॥ हां ॥ २ ॥ इगवासर सेन्यो थको ; शुद्ध सर्व संवरचारित्र ए हां। परमानंद धन पद दिये, सुरलोक जनित सुखचित्र ए । हां ॥३॥ भवभय तरुगण छेदवा, ए संयम निशित कुठार ए ॥ हां ॥ ज्ञान परंपर करण छे, अमृत पदनो हितकार ए ॥ हां ॥४॥ चरण अनंतर करण छ. निवाण तणो निरधार ए ॥ हां॥ सरवविरति शुद्ध चरणसे ; पामे अरिहंत पद सार ए ॥ हां