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________________ वीसस्थानक - पूजा १२५ || ५ || वरस चरण परजायमे, अनुत्तर सुख अतिक्रम होय ए ॥ हां ॥ सतर भेद चारित्रना, कहिया जिन आगम जोय ए ॥ हां || ६ || देशथी सम सयम विपे, उज्जवलता अनत गुण थाय ए ॥ हां || अरुण देव सेवी चरणने, भये जगगुरु जिन महाराय ए ॥ हां ॥ ७ ॥ ॥ काव्य ॥ कम्मोधकतार दवानलस्स, महोदयानन्द लयाजलस्स । विन्नाण पकेरुहकाणणस्त, नमो चारितस्स गुणापणस्स ॥१॥ ॐ हृीं श्रीचारित्राय नमः अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥११॥ ॥ द्वादश ब्रह्मचर्य पद पूजा ॥ ॥ दोहा ॥ सुरवरु सुरमणि सुरगनी, काम कलश अवधार । ब्रह्मचर्य इण सम कलो, कामित फलदातार । जिम जोतिषिया रजनिकर, सुरगणमे सुरराय । तिम सहु व्रत सिर सेहरो, ब्रह्मचरिजकहवाय ॥ ॥ राग काफी जंगलो || (तर्ज-भला प्रभुगुण चाल्दा हो) भवभयहरणा शिवसुखकरणा, सदा भजो ब्रह्मचारा ( मैं वारी जाऊँ सदा० ) हो ॥ भ० ॥ शील निध तरु
SR No.034089
Book TitleBruhat Pooja Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVichakshanashreeji
PublisherGyanchand Lunavat
Publication Year1981
Total Pages474
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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