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वीसस्थानक-पूजा
१२३ आगममें, विनयतणा सुविशेपे ।। ध्या० ॥१॥ तीर्थकर सिद्ध कुल गण संघा, किरिया धर्म वरनाणा। नाणी आचारिज मुनि थविरा, पाठक गणि गुण जाणा ॥ ध्या० ॥२॥ ए अरिहादिक तेरस पदनो, विनय करे जे भावे । ते तीर्थकर पद अनुभविने, अमृतपद सुख पावे ॥ ध्या० ॥३॥ जिम कंचनमें मृदुगुण लाभे, नहीय कालिमा पावे। तिण ए सकल धातुमें उत्तम, नाम कल्याण कहाचें ॥ ध्या० ॥४॥ तिम-विनयीमें छे मृदुता गुण, कुमति कठिनता नासे । कृष्णादिक लेश्यानी मलिनता, जाये विनय गुण भासे ॥ ध्या० ५ ॥ दोय सहस अरु अधिक चिहुत्तर, देवनदन निरधारी । गुरुवंदन विधि नारसे चाण, मेद करी उर धारो ॥ ध्या० ॥६॥ तीर्थक्रादिकनो मन रंगे, विनय चरण शुभ घ्यायो । धन नामा भविजन शुभयोगे, पद जिनहर्प पायो || ध्या० ॥७।
कान्य ॥ आणढिया सेसजगज्जणस्स, कुदिंदु पादा मलतावणस्म। सुधम्म जुत्तस्न दयामयस्स, णमो णमो श्रीपिणयालयस्स ॥२॥ॐ हीं श्रीग्नियाय नमः अष्टद्रव्य
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