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वृहत् पूजा-संग्रह ॥ अ० ॥ अंक विना जिम विंदु । बलि हणियो विन चन्द्रिका, वासरमें जिम इन्दु ॥ ८॥ हरिविक्रम नृप सेवतो ए॥ अ०॥ दरसण पद अभिराम । पद श्रीजिनहरपे धर्यो, वधते शुभ परिणाम ||१||
॥काव्य ॥ अणंत विन्नाण सुकारणस्स, अणंत संसार विदारणस्त । अणंत कम्मावलि धंसणस्स, णमो णमो निम्मलदंसणत्स ॥१॥ ॐ ह्रीं श्री दर्शनाय नमः अष्टद्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥ ६ ॥ ॥ दशमी विनयपद पूजा ||
॥दोहा॥ विनय भुवन रंजन करे, विनये जस विसतार । विनय जीव भूषित करे, विनये जयजयकार ॥ विनय मूल जिनधर्मनो, विनय ज्ञानतरु कंद । विनय सकलगुण सेहरो, जयजय विनय समंद ।।
॥राग सामेरी ॥ (तर्ज-पूजोरी माई, जिनवर अंम सुगंधे) ध्यावोरी माई, विनय दशम पद ध्यावो। पंच भेद दश विध तेरस विध, वावन भेद गणेशे। बासठ भेद कह्या