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वृहत् पूजा-संग्रह ध्यान, शुकल तुम जाणना ॥ ५ ॥ धरम बड़ो जग मांहि, कहो कुण जाणना। दया धरम जगमांय, बड़ो हे साजना ॥ ६॥ सब रसमें रससार, कहो कुण साजना । सब रसमें चैराग, बड़ो तुम जाणना ॥ ७ ॥ सब रमणीमें सार कहो, कुण साजना। शिव रमणी है सार, सुनो मेरे साजना ॥ ८ ॥ दान बडो कुण होय, कहो मेरे साजना, अभयदान सिरदार, सनो मेरे साजना ॥ ६ ॥ शिवरमणीको नाथ, कहो कुंण साजना, शिव रमणीको नाथ, सरव सिद्ध जाणना ॥ १० ॥ धरममें मोटो कौन, कहो मेरे साजना, धरम मांह शुभ भाव, सुणो मेरे साजना ॥ ११ ॥ दाता कहिये कौन, कहो मन भावना, गुरु बड़े दातार, धरम धन पावना ॥ १२ ॥ मीठी जगमें कौन, कहो मन भावना, मीठी जिनको वाणी, धरो चित चाहना ॥ १३ ॥ मीठी दाख खजरके, मीठी चाहनी, जिणसे अधिकी होय, वाणी जिनरायनी ॥ १४ ॥ सब व्रतमें कुण सार. कहो मेरे साजना, सब व्रतमें व्रत सार, चौथो व्रत जाणना ॥ १५ ॥ खरतर गच्छपति चन्द, सूरीश्वर सोहता, सकल विमल गुण गेह भविक मन मोहता ॥ १३ ॥ प्रीतसागर गणि शिष्य सकल गुण