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वृहत् पूजा संग्रह ने टालता सु०। न लगावे कोई दोष || सु० प्या० ॥ कुवचन केहनो सांभली, सु०। न धरे मनमें रोष ॥ प्या० ॥ ८॥ मधुकरनी परे मालता सु० । ऊंच नीच कुलमांह ।। प्या० ॥ इर्यासमिति सोधता सु० । लेता धर्म नो लाह ॥ प्या० ॥ ६ ॥ जयणा कर कर चालता, लेवे निरस आहार ॥ प्या० ॥ लांघे भाडो दे देहने, सु० । अणलाधे तपधार ।। प्या० ॥ १० ॥ ओसर मोसर देखने, सु० । रस लंपट नहीं होय || प्या० ॥ किरिया करता साधुजी, सु० । आलस न करे कोय ॥ प्या० ११॥ परिषह जीते आकरा, सु० । करम हुवे सब दूर ॥ प्या० ॥ मुनिवर मधुकर सम कह्या सु० । दिन दिन वधते नूर ॥ प्या० ॥ १२ ॥ जंगम तीरथ सारिखा, सु०। धरम तणा आधार ॥ प्या० ॥ एहवा मुनिवर पूजतां, सु० ॥ पावे वंछित सार ॥ प्या० ॥१३॥ धरमविशाल दयालनो, सु० । सुमति कहे करजोड़ ॥ प्या० ॥ एहवा श्रीमुनिराजजी, सु० । मुझ माथेका मोड ॥ प्या० ॥१४॥ ॐ हीं परमात्मने सर्व साधुभ्यो अष्ट द्रव्यं यजामहे स्वाहा ॥