________________
वृहत् पूजा संग्रह साखी धरमनो राख ॥ भ० ॥ श्रीजिनदत्तसुरीसर मोटा, श्रावक किया सवा लाख ॥ भ० स० ॥ ॥ रतनप्रभसरि उपगारी. ओस्यानगर मझार ॥ भ०॥ जिहांथी जेन धरम विसतरियो, मोटो कियो उपगार ॥ भ० स० ॥६॥ इत्यादिक गुणगणके दरिया, सेवो भविक उदार ॥ भ० ॥ ढंढण आदिक महा तपसूरा, नाम लियां जयकार ॥ भ० स० ॥ १० ॥ गजसुकमाल महामुनि बंदू, भाव करी इकतार ॥ भ० ॥ धन चन्ना अरू शालिभद्रजी, कीनी करणीसार ॥ भ० स० ॥११॥ खंधकसरिना शिष्य पाचसै, सूरवीर व्रतधार ॥ भ० ॥ पंचम पदमें ए मुनि पूजो, सदा हुवे सुखकार ॥ भ० स० ॥ १२ ॥ पंचम आरे छहडे होसी, दुपसह सूर दयाल ।। भ० ॥ इत्यादिक ए द्वीप अढोमें चंद् साध कृपाल ॥ भ० स०॥ धरम विशाल दयाल पसाये, पूज रची सुखदाय ॥ भ० ॥ सुमति कहे . ए पंच परमेष्ठी, कामधेनु कहवाय भ० स० ॥ १४ ॥
॥ ढाल दुजी ॥
(चाल-पणिहारीकी) सुण प्याराजी, सुणतां आसीस्वाद ॥ प्याराजी,