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पचपरमेष्ठी-पूजा
६६ घदन सुखकार ॥ भ० ॥ जंबू आदिक गुण के सागर, ते प्रणमुं हितकार ॥ भ० स० ॥ १ ॥ प्रभवादिक सय पांच उदारा, प्रतियोध्या सुखकार ॥ भ० ॥ सिज्जंभव आदिक जे सरि, तेहना शिष्य सुविचार ||भ० स०॥ २ ॥ थूलभद्र मोटो ब्रह्मचारी, दुक्कर दुक्करकार || भ० ॥ सिंह गुफा वासी जे मुनिवर, भापे दुक्कर कार ॥ भ० स० ॥ ३ ॥ वजकुमार बड़े उपगारी, प्रतियोध्या नर नार ॥ भ०॥ श्रीसिद्धसेन दिवाकर स्वामी, राखी जगमें कार भ० स० ॥४॥ विक्रम आदिक नृप अठारे, प्रतियोध्या सुखकार ॥ म० ॥ एक तीरथकु परगट करके, गुरु चरणा व्रतधार ॥ भ० स० ॥ ५ ॥ वलि जिनभद्र समामण कहिये, चूर्णी कारक जेह ।। भ० स० ॥ पन्नवणा चलि सूत्र ना कारक, श्यामाचारज तेह ॥ भ० स० ॥ ६ ॥ देवडीगणी ए सनमे मोटा, राख्यो ज्ञानज सार ॥ भ०॥ सूत्र ताडपत्रे घर राख्या, जेसलमेर मझार || भ० स० ॥ ७ ॥ अभयदेवसरि उपगारी, नव अग टीकाकार ॥ भ० ॥ हेमाचारज है चडभागी जिण कीनो हेमनो भार ॥ भ० स० ॥ ८॥ कुमारपालने जिण प्रतियोध्यो,