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________________ बीसवाँ प्रकरण । भावार्थ | मेरे में अविद्या आदिक धर्म कहाँ हैं ? अहंकार कहाँ है ? वाह्य वस्तु कहाँ है ? ज्ञान कहाँ है ? मेरा किसके साथ सम्बन्ध है ? सम्बन्ध दूसरे के साथ होता है, दूसरा न होने से मैं सम्बन्ध रहित हूँ । बन्ध और मोक्ष धर्म भी मेरे में नहीं हैं । मेरे निर्विशेष स्वरूप में धर्म की वार्ता भी कोई नहीं है, और निर्धर्मक मेरे स्वरूप में विद्या आदिक कोई भी धर्म नहीं है ।। ३ ।। मूलम् । क्व प्रारब्धानि कर्माणि जीवन्मुक्तिरपि क्व वा । क्व तद्विदेहकैवल्यं निर्विशेषस्य पदच्छेदः । क्व. प्रारब्धानि कर्माणि जीवन्मुक्तिः, अपि, क्व, वा, क्व, तत्, विदेहकैवल्यम्, निर्विशेषस्य, सर्वदा ॥ अन्वयः । शब्दार्थ | अन्वयः । सर्वदा सर्वदा निविशेषस्य= , निर्विशेष अर्थात् मे = मुझको क्व= कहाँ प्रारब्धानि=प्रारब्ध कर्माणि कर्म है ? ३८७ सर्वदा ॥ ४ ॥ = शब्दार्थ | वा=अथवा क्=कहाँ जीवन्मुक्तिः = जीवन्मुक्ति है ? च = और क्व= कहाँ afaa__ वह विदेहमुक्ति भी यम् अपि है ? | भावार्थ । शिष्य कहता है कि हे गुरो ! मुझ निर्विशेष, निराकार,
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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