SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उन्नीसवाँ प्रकरण । ३७९ नहीं होता है । मेरी दृष्टि में भूत, भविष्यत्, और वर्तमान कोई नहीं है; और न कोई देश है। क्योंकि मैं नित्य अपनी महिमा में ही स्थित हूँ और सबमें मेरी एक आत्मदृष्टि है ॥ ३ ॥ मूलम् । क्व चात्मा क्व च वानात्मा क्व शुभं क्वाशुभं तथा । क्व चिन्ताक्व चवा ऽचिन्तास्वमहिम्निस्थितस्य मे ॥४॥ पदच्छेदः । क्व, च, आत्मा, क्व, च, वा, अनात्मा, क्व, शुभम्, क्व; अशुभम्, तथा, क्व, चिन्ता, क्व, च, वा, अचिन्ता, स्वमहिम्नि, स्थितस्य, मे ।। अन्वयः। शब्दार्थ ।। अन्वयः। शब्दार्थ । स्वमहिम्नि=अपनी महिमा में शुभम् शुभ है ? स्थितस्य स्थित हए क्व-कहाँ मेमुझको अशुभम् अशुभ है क्वकहाँ तथा और आत्मा आत्मा है ? क्व कहाँ च-और चिन्ता चिन्ता है ? वा=अथवा वा=अथवा क्व कहाँ अनात्मा अनात्मा है ? क्व-कहाँ क्व कहाँ अचिन्ता-अचिन्ता है ? भावार्थ । शिष्य कहता है कि हे गुरो ! अपनी महिमा में स्थित जो मैं हूँ, मेरी दृष्टि में आत्मा कहाँ ? और अनात्मा कहाँ
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy