SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 376
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अठारहवाँ प्रकरण । ३ अन्वयः। मूलम् । ज्ञः सचिन्तोऽपिनिश्चिन्तः सेन्द्रियोऽपिनिरिन्द्रियः । सबुद्धिरपि निर्बुद्धिः साहंकारोऽनहंकृति ॥ ९५ ॥ पदच्छेदः। ज्ञः,सचिन्तः, अपि, निश्चिन्तः, सेन्द्रियः, अपि, निरिन्द्रियः, सबुद्धिः, अपि, निर्बुद्धिः, साहंकारः, अनहंकृतिः ॥ शब्दार्थ । । अन्वयः। शब्दार्थ। ज्ञः ज्ञानी सबुद्धिः बुद्धि-सहित सचिन्तः चिन्ता-रहित ___ अपि भी अपि भी निश्चिन्तः चिन्ता-रहित है निर्बुद्धिः बुद्धि-रहित है सेन्द्रियः इन्द्रियों-सहित साहंकारः अहंकार-सहित अपि भी अपि भी निरिन्द्रियः इन्द्रिय-रहित है । अनहंकृतिः अहंकार-रहित है ।। भावार्थ । ज्ञानवान् जीवन्मुक्त लोगों की दृष्टि में चिन्ता-युक्त प्रतीत होता है, परन्तु वास्तव में वह चिन्ता-रहित है। लोक-दष्टि से वह इन्द्रियों के सहित है, वास्तव में वह निरिन्द्रिय है। लोगों की दृष्टि में वह बुद्धि-युक्त प्रतीत होता है। वास्तव में वह बुद्धि-रहित है। लोगों की दृष्टि में अहंकार के सहित है, वास्तव में वह अहंकार-रहित है। क्योंकि सर्वत्र ही उसकी आत्म-दृष्टि है। जो अपने आपमें आनन्द है, वह और किसी में देखता नहीं है ।। ९५ ।।
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy