________________
अन्वयः ।
स्वभावभूमिविश्रान्तिवि
स्मृताशेषसंसृतेः
अठारहवाँ प्रकरण ।
शब्दार्थ |
(जो निज स्वभाव रूपी भूमि में विश्राम करता है, विस्मरण है संपूर्ण जिसको, ऐसे
संसार
महात्मनः = महात्मा को
अस्य इस बात की
अन्वयः ।
चिन्ता-चिन्ता
न नहीं है वा= चाहे
अन्वयः ।
अकिञ्चनः = गृहस्थधर्म - रहित कामचार:- विधि - निषेध -रहित असक्तः = असक्ति - रहित केवलः = विकार रहित
देहः = देह
उदेतु स्थित हैं
वा= चाहे
पततु नाश होवे ||
भावार्थ ।
जिस विद्वान् को अपना स्वरूप ही भूमि है, अर्थात् विश्राम का स्थान है । जिसको अपने स्वरूप में विश्राम करके किसी प्रकार की भी चिन्ता नहीं होती है, चाहे, देह रहे, वा न रहे, वही जीवन्मुक्त है, वही संसार से निवृत्त है ॥ ८६ ॥
मूलम् ।
अकिञ्चनः कामचारो निर्द्वन्द्वरिछन्नसंशयः ।
असक्तः सर्वभावेषु केवलो रमते बुधः ॥ ८७ ॥ पदच्छेदः ।
अकिञ्चन, कामचारः, निर्द्वन्द्वः, छिन्नसंशयः असक्तः, सर्वभावेषु, केवलः, रमते, बुधः ॥
शब्दार्थ | अन्वयः ।
३६१
शब्दार्थ |
बुधः ज्ञानी
सर्वभावेषु = सब भावों में
शब्दार्थ |
रमते रमण करता है ॥