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अठारहवाँ प्रकरण ।
पदच्छेदः ।
शुद्धस्फुरणरूपस्य, दृश्यभावम्, अपश्यतः, क्व, क्व, च, वैराग्यम्, क्व, त्यागः, क्व, शमः, अपि वा ॥
,
शब्दार्थ |
अन्वयः ।
अन्वयः ।
दृश्यभावम् = दृश्यभाव को अपश्यतः- नहीं देखते हुए
शुद्धस्फुरण- शुद्ध स्फुरण रूप वाले को
रूपस्य
क्= कहाँ
विधिः कर्म की विधि है
च=और
क्व कहाँ
त्यागः = त्याग है
वा अपि=अथवा
क्व= कहाँ
शमः शम है ॥
३४७
विधिः,
शब्दार्थ |
भावार्थ ।
जो विद्वान् शुद्ध-स्वरूप, स्वप्रकाश, चिद्रूप, अपने आपको देखता है, वह किसी और दृश्य पदार्थ को नहीं देखता है । उसको कर्म में राग कहाँ है ? और विधि कहाँ है ? और किस विषय में उसको वैराग्य है, और किसमें शम है ॥ ७१ ॥
मूलम् । स्फुरतोऽनन्तरूपेण प्रकृति च न पश्यतः ।
क्व बन्धः क्व चवा मोक्षः क्व हर्षः क्व विषादता ॥ ७२ ॥ पदच्छेदः ।
स्फुरतः, अनन्तरूपेण, प्रकृतिम्, च, न, पश्यतः, क्व, बन्ध:, क्व, च, वा, मोक्षः, क्व, हर्ष, क्व, विषादता ॥