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अष्टावक्र गीता भा० टी० स०
पदच्छेदः ।
भ्रमभूतम्, इदम्, सर्वम्, किञ्चित् न, अस्ति, इति, निश्चयी, अलक्ष्यस्फुरणः शुद्धः, स्वभावेन, एव, शाम्यति ॥
अन्वयः ।
शब्दार्थ |
अन्वयः ।
शब्दार्थ |
३४६
इदम् =यह सर्वम् = सब भ्रमभूतम् = प्रपञ्च किञ्चित् = कुछ न अस्ति नहीं है। इति = ऐसा
अलक्ष्यस्फुरण = चैतन्यात्मानुभवी
शुद्धः-शुद्ध
निश्चयी निश्चय करनेवाला
स्वाभावेन स्वभाव से
एव = हि
शाम्यति=
शान्ति को प्राप्त होता है ॥
भावार्थ ।
प्रश्न - अनर्थ की शान्ति के लिये प्रयत्न करना चाहिये ?
उत्तर- अधिष्ठान के साक्षात्कार होने पर यह संपूर्ण जगत् भ्रम करके ही कल्पित प्रतीत होता है । वास्तव में कुछ भी सत्य प्रतीत नहीं होता है । जिस पुरुष को ऐसा ज्ञान है, वह कुछ भी प्रयत्न नहीं करता है । क्योंकि वह स्वभाव करके ही शान्तरूप है । शान्ति के लिये फिर उसको कुछ भी कर्तव्य बाकी नहीं रहता है ॥ ७० ॥
मूलम् ।
शुद्धस्फुरणरूपस्य
दृश्य
भावपपश्यतः ।
क्व विधि क्व च वैराग्यं क्व त्यागः क्व शमोऽपि वा ॥ ७१ ॥