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________________ अठारहवाँ प्रकरण । -:: अन्वयः। मूलम् । यस्य बोधोदये तावत्स्वप्नवद्भवति भ्रमः। तस्मै सुखैकरूपाय नमः शान्ताय तेजसे ॥ १॥ पदच्छेदः । यस्य, बोधोदये, तावत्, स्वप्नवत्, भवति, भ्रमः, तस्मै, सुखैकरूपाय, नमः, शान्ताय, तेजसे ।। शब्दार्थ । | अन्वयः । शब्दार्थ। जिसके बोध के तस्मै-उस यस्य बोधोद । उदय होने पर सुखैकरूपाय-आनन्द-रूप तावत्-पहले शान्ताय शान्त-रूप भ्रम:-भ्रान्ति च और स्वप्नवत्-स्वप्न के समान तेजसे तेजमय रूप को भवति होती है नमः नमस्कार है । भावार्थ । अब अठाहरवें प्रकरण का प्रारम्भ करते हैं इस प्रकरण में शान्ति की प्रधानता को दिखलाते हुए
SR No.034087
Book TitleAstavakra Gita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaibahaddur Babu Jalimsinh
PublisherTejkumar Press
Publication Year1971
Total Pages405
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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