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सत्रहवाँ प्रकरण |
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दान्ति - चाहे कितना ही नंगा रहे, वह कदापि जीवन्मुक्त नहीं हो सकता है । जो वासना से रहित है, वही जीवन्मुक्त है ।। १३ ।।
मूलम् ।
सानुरागां स्त्रियं दृष्ट्वा मृत्युं वा समुपस्थितम् । अविह्वलमनाः स्वस्थो मुक्त एवमहाशयः ॥ १४ ॥
पदच्छदः ।
सानुरागाम्, स्त्रियम् दृष्टवा, मृत्युम्, वा समुपस्थितम्, अविह्वलमनाः, स्वस्थः, मुक्तः, एव, महाशयाः ॥
अन्वयः ।
शब्दार्थ | अन्वयः ।
सानुरागाम् = प्रीति युवत स्त्रियम् = स्त्री को
वा-और
समुपस्थितम् = समीप में स्थित मृत्युम् = मृत्यु को दृष्टवा=देखकर
अविह्वलमनाः= {
शब्दार्थ |
व्याकुलता रहित होता हुआ
+ च =और
स्वस्थः शान्त होता हुआ
महाशय: = महापुरुष
एव = निश्चय करके मुक्तः ज्ञानी है ||
भावार्थ ।
अनुराग अर्थात् प्रीति के सहित स्त्री को देख कर के जिसका मन कामातुर नहीं होता है, और मृत्यु को समीप स्थित देखकर जिसका मन भय को नहीं प्राप्त होता है, किन्तु अपने आत्मानन्द में आनन्द रहता है, वही जीवन्मुक्त है ॥ १४ ॥
मूलम् । सुखे दुःखे नरे नार्यां संपत्सु च विपत्सु च ।
विशेषो नैव धीरस्य सर्वत्र समदर्शिनः ॥ १५ ॥