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बारहवाँ प्रकरण ।
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अन्वयः। शब्दार्थ । | अन्वयः।
शब्दार्थ। हे ब्रह्मन् हे प्रभो!
अभावात् अभाव से (त्याजय और
अद्य अब हेयोपादेयविरहात्-२ ग्राह्य वस्तु के
अहम्=मैं वियोग से
एवम् एव-जैसा हूँ वैसा ही एवम् वैसे ही
आस्थितः स्थित हूँ
हर्षविषादयोः= हर्ष और विषाद
भावार्थ । जनकजी फिर अपने अनुभव को कहते हैं कि हे प्रभो ! त्यागने-योग्य और ग्रहण करने योग्य वस्तु का अभाव होने से अर्थात आत्म-ज्ञान की प्राप्ति होने से न तो मेरे को कुछ त्याग करने-योग्य रहा है, और न कुछ ग्रहण करने के योग्य रहा है, इसी वास्ते हर्ष विषादादिक भी मेरे को नहीं हैं, क्योंकि हर्ष विषादादिक भी ग्रहण और त्याग करने से ही होते हैं, इस वास्ते अब मैं अपने स्वरूप में ही स्थित हुआ हूँ ।। ४ ।।
आश्रमानाश्रमं ध्यानं चित्तस्वीकृतवर्जनम । विकल्पं मम वीक्ष्यतैरेवमेवाहमास्थितः ॥ ५ ॥
पदच्छेदः । आश्रमानाश्रमम्, ध्यानम्, चित्तस्वीकृतवर्जनम्', विकल्पम्, मम, वीक्ष्य, एतैः, एवम्, एव, अहम्, आस्थितः ।।