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(३८)
अपरोक्षानुभूतिः ।
इति अव्ययः अपक्षयादिविकारशून्यः अहंकार साक्षीति
भावः ॥ ४० ॥
भा. टी. इसप्रकार आत्मा स्थूल और सूक्ष्म दोनों प्रका रके देहों से अलग है और ईश्वर है सर्वव्यापक है सर्वरूप है सर्वसे अतीत है (अर्थात जिससे परै और कोई नहीं है सबसे श्रेष्ठ है ) अहमशब्द करकै कहा जाय है भूत भविष्यत वर्तमान तीनों कालमें एकरस है ॥ ४० ॥
इत्यात्मदेहभागेन प्रपंचस्यैव सत्यता ॥ यथोक्ता तर्कशास्त्रेण ततः किंपुरुषार्थता ॥ ४१ ॥
सं.टी. अथेदानीमात्मनो देहद्वयातिरिक्तत्वप्रतिपा दनमनर्थकमिति शंकते इतीति । इति पूर्वोक्तप्रकारेण वर्णितेनात्मदेदविभागेन प्रपंचस्यैव सत्यता तथोक्ता यथा तर्कशास्त्रेण ततः प्रपंच सत्यत्वप्रतिपादनाकिपु रुषार्थता कुत्सितपुरुषार्थत्वं भयनिवृत्त्यभावादित्यर्थः "द्वितीयाद्वै भयं भवति" इति श्रुतेः ॥ ४१ ॥
भा. टी. तर्कशास्त्र अर्थात् न्याय शास्त्र के माननेवालोंने इस आत्मा और देहमें भेदबुद्धिकरके : न्याय शास्त्रमें जो प्रपवकी सत्यता कही है ( अर्थात् परमाणुको नित्य मानकर ईश्वरको निमित्तकारण संसारकी उत्पत्ति मानी है ) उसको