________________
( १२६ ) छे, वली बीजी रीते पण समजवानुं छे के, समायिक संयुक्त जे पौषध क रे छे, तेमां आहारनो पौषध देशथी तथा सर्वथी छे. ने शरीरसत्कारादिक पौषध सर्वथा करवानो कह्यो छे. एटले आभूषण केम करीने राखे ? वली तत्वार्थमां पण पाने २४३ मे आभूषण पहेरी समायिक पौषध करवो योग्य नथी. स्त्रीओ जे स्वामीनो शृंगार पहेरे छे, जे कोइ पण बखत उतारती नथी; ते शिवायनो राखे नहि एम संभव थाय छे.
६९ प्रश्नः - कोइक मुनी संयमथी चूक्या छे ते प्रवृत्ति करी शकता नथी, पण शुद्ध परुपणा करे छे; तो तेमनी पासे धर्म सांभलवो के नहि ?
उत्तरः- शुद्ध प्ररुपक गुण उपदेशमालामां बहु वखाण्यो छे, एवा पुरुपने शास्त्रमां संवेगपक्षी कह्या छे. शुद्ध प्ररुपकपणुं श्राववुं दुर्लभ छे. ने जेने ते गुण होय तो तेमनी पासे सांभलवुं. तेनो विनय पण करवो. केटलाएक कहे छे जे जेवा तेवा पासे जइए पण तेने वंदना करीये नहि. ए कहेतुं योग्य नथी. कारण जे जेनी पासे सांभळवु छे ने ज्ञान लेवुं छे, तो अवश्य तेने वंदन करवुं जोइए. ने वंदन करवा योग्य नहि तो सांभल पण योग्य नथी. पण संवेगपक्षीनी मुख्य परीक्षा एटली ज छे के बीजा त्यागी पुरुष छे, रूडी रीते संयम पाले छे ते पुरुषनी निंदा नहि करे, ने उलटा तेमनुं बहुमान करशे, तेमनी सेवा भक्ति करशे. ते मनी सेवा भक्तिनी प्रेरणा करशे, कारण जे पोताथी संयम पलतुं नथी, पण पोतामां समकित गुण रह्यो छे, तेथी ते पोताना दूषणनी निंदा क रशे. ने पोताथी अधिक संयम पाले छे तेनुं अवश्य बहु मान करशे. ए. वा गुणवंतनो स्वभाविक धर्म छे. ने एवा पुरुष छे ते श्रावकने सेववा योग्य छे, हालना कालमां बकुशकुशिल संयम पण छे माटे श्रल्प दूषण जोइ मुनिपणुं निषेधवाथी म्होटुं दूषण थाय, माटे शुद्ध प्ररूपक उ पर बहु लक्ष राखवो. गुणीनी निंदा थाय तो फरी गुणीनो योग मलवो दुर्लभ थाय. निर्गुणीनी साथे राग थाय तो गुणी उपर द्वेष थाय, तो फरी धर्म मेलवा दुर्लभ थाय. वास्ते पोताना आत्मानी संभाल राखी. शुद्ध प्र
Scanned by CamScanner