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(१२ ) रुपक ज छे तो ते जरुर सेववा योग्य छे.
१. प्रश्न:-साधुजी महाराज पासे दीक्षा लेवा आवे तो तेना माता पितानी आज्ञा लइ दीक्षा आपे के केम ?
उत्तरः-माता पितानी आज्ञाथी दीक्षा लेवानी मर्यादा छे, पण ते म. यादा अष्ठकजीमां हरिभद्रसूरि महाराजे दर्शावी छे तेनो सार नीचे मुजब छे-दीक्षा लेनार पोताना माता पीताने समजावीने आज्ञा मागे, ने माता पिता आज्ञा आपे तो ते उत्तम छे; पण मातादिक आज्ञा न आपे तो पोते साधुनो वेष पहेरी घरमा रहे ने आज्ञा मागे, एम केटलाएक दिवस घरमां रहे. तो पण आज्ञा न आपे त्यार पछी घरमांथी चाली नी. कले. गुरु पासे जइ संयम ले. ए विषे त्यां एवो पण तर्क करयो छे जे एवी रीते चाल्यो जाय त्यारे पाछल माता पिता दुःखी थाय तेनो दोष दीक्षा लेनारने लागे. ए तर्कनो जवाब एवो प्राप्यो छे जे कोइना मात पिता रोगी छे ने साथे पुत्र पण छे ने कंइ गाम जता होय एवामां घणी मांदगी थइ जवाथी पुत्र औषध लेवा जाय ने कदापि माता पितादिकमांथी कोइy मरण थाय तो तेनो दोष पुत्रने लागतो नथी. तेम माता पिताने समजाव्या छतां आज्ञा आपता नथी, तो ते दीक्षा लेनारने दोष नथी. पुत्र जेम औषध लेवा गयो ने पिता मरण पाम्या तो दोष नथी, तेम ए पुत्र जाणे छे के दीक्षा लइ ज्ञान भणीने आवीने माता पिताने समजावीश. एवी भावनाथी जाय छे तेने दोष नथी. एवी रीतनो अ. धिकार अष्टकजीमां पाने ९२ मे पचीशमा अष्टकजीमा छे. तथा पंच . स्तुमां पण दीक्षानो अधिकार घणो चाल्यो छे त्यां घणा तर्क करया छे, सां पण एमज कहेलुं छे. एक प्रश्न एबु छे जे माता पिता वृद्धछे ने पुत्र दीक्षा ले तो एना दयाना प्रणाम शी रीते रखा ? ते विशे त्यां जवाब माप्यो छे के दीक्षा लेनारने जगतमा जेटला जीवं छे ते बधा साथे अ. नतोकाल गयो. तेथी माता पितानो संबंध बन्यो छे. सारे एक माता पितानी दया पाले के भवोभवना माता पितानी दया पाले ? एना चित्तमा
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