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प्रकृति का चिन्तवन हो । और विविध द्रव्यान्तरगत अनन्त पर्याय का परिवर्तन होने से नित्य आसक्त होने वाला मन राग द्वेषादि मोहजन्य प्रवृत्ति की तरफ आकुलता को प्राप्त नहीं करता । इस प्रकार चारों भेद का वर्णन संक्षेप से किया गया । इसका वर्णन विस्तार पूर्वक जानना चाहते हों उन्हें मुनि महाराज आदि से पूछना चाहिये ।
विधि-विधान
जैन सिद्धान्त मंत्र - शास्त्रों में जप जाप्य का स्पष्टीकरण विशेष रूप से किया है । लेकिन वर्तमान जैन प्रजा में से बहुत से व्यक्ति का लक्ष्य विधि-विधान की तरफ तो कम हो गया और कार्य सिद्धि की तरफ बढ़ गया हो ऐसा मेरा अनुमान है ! परन्तु विधि-विधान ज्ञात किये बिना मन्त्र सिद्धि असम्भव है ।
हर एक मन्त्र साध्य करने के पहले शुभ महीना शुभ पक्ष पञ्चमी दशमी पूर्णिमादि पूर्णा तिथि चन्द्र बल सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग, आनन्द योग, श्री वत्स योग, छत्र योग आदि श्रेष्ठ देखकर बलवान नक्षत्र और बलवान लाभकारी चौपड़ियों में निज का सूर्य स्वर चलता हो तब प्रवेश करना चाहिये ।
साध्य करने के लिये देवस्थान, या अन्य उत्तम स्थान, बाग या जलाशय के समीप भूमि पर याने ऊपर की मंजिल पर नहीं और भूमि तल या तल घर में बैठकर ध्यान करना चाहिये । ध्यान करने में दत्त चित्त रहना और किसी कार्य की सिद्धि के लिये प्रयत्न हो तो यथा योग्य सामग्री एकत्रित कर धूप दीप, फल मादि की व्यवस्था कर लेना चाहिये, दीपक लालटेन में और जीव
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